Aaj
वक़्त थम सा जब जाता है
बदलता हुआ यह मौसम भी कुछ कह नहीं पाता है
मन भटकते हुए पूछता है. बस अब आगे क्या ?
हर कोशिश पर नाकामी की एक छाप लग जाती है
हर उम्मीद ना-उम्मीद मे बदल जाती है
दिल भी करहाता है . अब आगे क्या ?
आते आते मुस्कराहट होंटो का एक कोना छु जाती है
गुदगुदी भी चीख चीख के चिल्लाती है
क्या हुआ है तुझे - अब आगे क्या ?
अब आगे क्या ? अब आगे क्या ?
सवाल कम उलझन ज्यादा लगने लगती है
मां के कोख से शुरू हुई यह कहानी
बेहद सी दास्ताँ लगने लगती है
आज मे जीना भी एक कला है
हर एक है इस कला का कलाकार
बस कुरेद रही हूँ खुद को आज
फिर उसकी ही चाह मे !!!!
Nice Effort Indu... Keep writing...
ReplyDeleteThanks dear. coming from you really means something..:-)
Deleteawesome.. loved it. I'll share it on FB
ReplyDeleteThanks so much Mona.
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